मेरे उपन्यास ‘ताली’ से....... (01)
‘‘मैं पैदा हुई तो मेरे स्ट्रक्चर में यह कहा गया कि लड़का हुआ है। फैमिली में बहुत सारी ख़ुशियां थीं। लड़का होने से एक फ़ैमिली को अलग ही ख़ुशी होती है। पर जब पता चला कि नहीं बेटा नहीं है, यह ट्रांसजेंडर पैदा हुआ है, तो समाज से छुपा के रखना बहुत ज़रूरी था; क्योंकि समाज में 1983 में वह एक्सेप्टेन्स नहीं था- एक किन्नर पैदा होना किसी के घर में। तो अपनी फैमिली से बिलॉन्ग करते हुए बहुत सारी चीज़ों को ‘सैक्रिफ़ाइस’ करना पड़ा एजुकेशन के लिए। उसी बीच में जैसे-जैसे बढ़ती गई मेरे अंदर की जो लड़की थी वह धीरे-धीरे जवानी की तरफ मुड़ गई। एक लड़की की जब मैच्योरिटी आती है, उसी तरह मेरी ज़िंदगी में भी मैच्योरिटी अंदर से आना शुरू हुई। मुझे आइब्रोज करना पसंद था, आईने के सामने खड़े रहकर लिपस्टिक लगाना.... ये, वो.... लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद था....। उसके लिए बहुत बार मेरी फैमिली ने मुझे मारा-पीटा। ये सब घर में मेरे को फ़ेस करना पड़ा। पर एक टर्न आया कि नहीं, अब अपने अंदर की नारी को उसका हक़ दिलाऊंगी। तब उम्र के सोलह साल में मुझे अपनी फ़ैमिली से अलग होना पड़ा, यही कहते हुए कि अलविदा, क्योंकि ये मेरा समाज नहीं है। यह समाज मुझे कभी नहीं अपनाएगा, इसलिए मुझे अपने समाज के पास जाना चाहिए जो किन्नर समुदाय है।’’
मेरे उपन्यास ‘ताली’ से....... (02)
‘‘सोनिका....
यह सब अच्छा लगता था। खाना बनाना, फ्ऱेंड्स के साथ बैठकर, वह भी लड़कियों के ग्रुप में हम खेलते थे- सर पर दुपट्टा लेकर बैठना, शर्माना, चलते वक़्त कमर में लचक लाना। यह अलग ही बचपन था। पर जो बचपन हम जी रहे थे तो इस समाज ने भी कुछ ऐसे ताने कसे... ‘‘ए गुड़..... ए मामू.... ए छक्का....’’ ऐसे ताने सुनते हुए हमारा बचपन एक तरह से छिन गया। बचपन की यादें बहुत आती हैं। जब हम दूसरे बच्चों को खेलते हुए देखते हैं.... लड़कियों को, लड़कों को.... तो हम कभी-कभी सोचते हैं कि हमारा बचपन भी एक था, जिसको आज हम ढूंढ़ते हैं। जब हम अपनी कम्युनिटी के बीच में बैठते हैं तो बचपन को जीने की पूरी कोशिश करते हैं, हम उस बचपन को याद करते हैं और उसको अच्छे पॉजिटिव ढंग से मिलाकर सोचते हैं, उसके साथ जीने का अधिकार हमको भी है और बच्चों की तरह।
आपके कई दोस्त होते हैं, बचपन की सहेलियां होती हैं.... ऐसे दोस्त, जो ट्रांसजेंडर नहीं है और जिन्होंने आपका साथ दिया है.....
मेरी लाइफ में तो स्कूल टाइम के फ़ैन हैं। अब जब उनको पता चला कि जो हमारे साथ पढ़ता था- वो आज एक मीडिया पर्सनैलिटी है तब उससे मेरा संबंध टूट चुका था, क्योंकि मैं एक किन्नर हूं। आज मैं हूं, अपना एक नाम है। तब मेरा एक्सेप्टेंस नहीं था, क्योंकि मैं किन्नर हूं और उसकी सोच का क्या। उसकी फैमिली उसको कहती थी कि उसके साथ मत घूमो.... कहीं उसके साथ मन मिल जाये तो तुम भी उसके जैसा ना बन जाओ। तो वह डर था जिससे वह हमसे खुल कर बात नहीं कर पाते थे। एक समय भारत आज़ादी के लिए लड़ रहा था; वैसे ही हम अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे कि हमें भी आज़ादी चाहिए, हम भी आज़ादी से जीना चाहते हैं। जब भारत का संविधान सब को आज़ादी से जीने का हक़ देता है... चाहे वो औरत हो या मर्द हो, जब वे जी सकते हैं तो किन्नर क्यों नहीं।.....’’
मेरे उपन्यास ‘ताली’ से....... (03)
सोेनिका
हम लोग हमेशा कहते हैं कि ‘गुरु ब्रह्मा... गुरु विष्णु....’, पर मेरे केस में ये ‘गुरु ब्रह्मा... गुरु विष्णु....’ नहीं रहा। पोस्ट ग्रेजुएशन के टाइम में वही गुरु लोग थे जो क़दम-क़दम पर मुझे नोच रहे थे कि आपको अगर पढ़ाई करनी है तो बेटा शाम को हमारे घर में आकर हमारा दिल बहलाओ। जब लोगों का दिल बहला सकती हो, ट्रेन में जा सकती हो तो हमारा दिल क्यों नहीं बहला सकती। हम भी पैसे देंगे। जिस प्रोफेसर को मैं गुरु मानती थी, वह जब मेरे शरीर का मज़ा ले रहा था, तब मैं सोचने लगी कि क्या मैं ग़लत हूं.... क्या मैं ग़लत चीज़ कर रही हूं.... क्या मैं ग़लत इंसान हूं या मेरी ग़लती है कि मैं पढ़ाई कर रही हूं। सोचती थी कि मुझे आज जिं़दगी में कुछ बनना है और एक अलग पहचान बनानी है तो हम आपके शारीरिक सुख के साधन ना बन के हम आपके समाज की मुख्यधारा में आ सकें। समाज में ही मुझे एक स्त्री-पुरुष ने जन्म दिया है। एक स्त्री-पुरुष मेरे मां-बाप हैं। उन्हीं की कोख से निकली हूं और उन्हीं के आंगन की मिट्टी हूं, तो उस मिट्टी की तुलसी की लाज मुझे भी रखनी आती है। मैं जब सिंगार करके निकलती, कॉलेज जाती तो लोग कहते, ‘‘देखो, आ गई.... आज किसका दिल बहलाएगी, आज किसके साथ जाएगी, आज किसकी कार में बैठकर जाएगी।’’ इतने सारे ताने कसे गए कि बाद में आदत हो गई कि हां चला,े यह नोच रहे हैं, नोचने दो.... समाज का काम है नोचना। जब एक स्त्री को नोचा जा सकता है तो मैं तो एक किन्नर हूं। मुझे नोच रहे हैं तो कुछ ग़लत नहीं कर रहे....। मैं तो कुछ ग़लत नहीं कर रही, क्योंकि मेरे अंदर भी एक नारी-शरीर ही तो है।
आज आपका अपने परिवार से संबंध है या नहीं....
परिवार से हम पूरी तरह से अलग हो चुके हैं। मेरे रियल पेरेंट्स की डेथ हो चुकी है। बट, हां, जिन्होंने मुझे बेटी माना है, वह आज भी मेरे संपर्क में हैं। आज वह समाज में मेरे साथ चलते हैं और आज वही मेरा परिवार है; क्योंकि मेरे जो रियल पेरेंट्स थे, जिन्होंने मुझे जन्म दिया, उन्होंने अपने संस्कार के साथ मुझे पाल-पोस के दसवीं तक साथ दिया। मेरे पापा की यही कम्प्लेन्ट थी कि मेरा बेटा किन्नर कैसे हो गया और मेरे मम्मी को हमेशा ब्लेम किया जाता था कि यह मेरी औलाद नहीं है, यह कहीं और की औलाद है। पता नहींे किसका यह ले आई है हमारे घर में।
मेरे उपन्यास ‘ताली’ से....... (04)
‘‘मेरी लाइफ़ में कुछ ऐसा हुआ..... मैं कभी भूल नहीं सकती। ये तब की बात है जब मेरे पास कोई जॉब नहीं था और मुझे ‘ट्रेन मांगना’ पड़ता था। उस वक्त वे मेरीे लाइफ़ में आए.... एजुकेशन होते हुए भी ट्रेन में जाकर वह करना पड़ता था.... कहते थे लोगों से कि ‘दे दे भैया’... ‘दे दे मामा’... लोगों से प्यार से जो भी मिलता था वह लेकर हम लोग चले आते थे।
तो उस वक्त ये वहां पर बैठे हुए थे ऊपर.... और उनके पास पैसा नहीं था। तो उन्होंने मेरे लोगों को बोला, ‘‘हम तीन दिन से भूखे हैं.... कुछ पैसे दो...।’’ मेरे चेले ने मुझे आवाज़ दिया कि गुरु देखिए, ये पैसा मांग रहे हैं। मैं गई, उन्हें देखा। उनसे पूछा कि क्यों मांग रहे हो पैसा.... तो उनका आन्सर था कि हम घर से भाग कर आये हैं.... अभी हमारे पास कोई सपोर्ट नहीं है.... हमको भूख लगी है और हमारे पास पैसा भी नहीं है....। उस वक्त़ मैंने उनको सपोर्ट किया.... खाना खिलाया। फिर वे बोले कि खाना खिला दिया तो एक छत का इंतजाम करा दो.... और मेरे लिए कोई जॉब भी दिला दो। मैं सोच में पड़ गई। सोचा, इनको कहीं शिफ़्ट करा देंगे.... सपोर्ट करेंगे....। मैं उन्हें घर ले आई। दो-तीन दिन मेरे घर में रहे। मैंने अपने एक फ्ऱेंड, जो एमबीए में मेरे साथ थे, उनसे बात की कि कुछ हो सकता है क्या.... किसी कॉल सेंटर में। मैंने उसके सीवी भी फॉरवर्ड कर दी। कुछ ही दिन में उसको कस्टमर-केयर में जॉब मिल गई।
मैंने कहा, ‘‘अब तेरे को जॉब मिल गई है.... सब कुछ मिल गया.... तू कहीं पर भी कमरा लेकर रह सकता है....’’ तो उसका आंसर था कि बाहर कहीं किराया देने से अच्छा कि मैं आपको दूंगा.... क्योंकि अभी मेरे हाथ में पैसा नहीं कि मैं अलग रह सकूं.....।
मैं क्या कहती....। फिर हम साथ-साथ रहने लगे। थोड़े दिनों में हममें ऐसी अंडरस्टैंडिंग आ गई कि हम एक-दूसरे को अच्छे से जानने लगे। हममें एक बॉन्डिंग आ गई।
मेरे किन्नर होने से उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं थी। वह मेरे साथ रहते.... बिंदास घूमने जाते....। हमलोगों में सब कुछ था, सिर्फ सेक्सुअल रिलेशनशिप नहीं थे।
वैलेंटाइन डेपर उन्होंने मुझे प्रपोज किया कि मैं आपसे अलग नहीं होना चाहता.... आप ही के साथ रहना चाहता हूं.... आपसे शादी करना चाहता हूं....। मैंने कहा, ठीक है....। फिर हमने एक मंदिर में जाके शादी कर ली। अपनी फ़ैमिली में उन्होंने बताया कि हां, मैंने शादी की है। उसकी फ़ैमिली ने उस वक़्त एक्सेप्ट किया मुझे.... मैं तब अच्छा-ख़ासा हज़ार-पांच सौ रोज़ कमा के ला रही थी। उनके बेटे की पूरी सैलरी उनके पास जाती थी..... उसका ख़र्चा तो कुछ था ही नहीं....।
बाद में उनकी बेटी की शादी आई तो उन्होंने बताया कि उनको सोने की ज़रूरत है। तो मेरे पास जो भी गोल्ड था मेरा, मैंने दे दिया कि जाओ, अपनी सिस्टर की शादी कराओ, आख़िर वो मेरी ननद है। लेकिन उस शादी में मुझे इनवाइट नहीं किया गया; क्योंकि आप समाज को कैसे बोलोगे कि हमारी बहू किन्नर है.... पर मुझे बहू का दर्ज़ा उन्होंने दिया.... अपनी फ़ैमिली में रखा, रेस्पेक्ट दिया। कहते हैं ना कि रिश्तेदार आख़िर रिश्तेदार होते हैं और हम दोनों ने शादी के दो साल बाद डिसाइड किया कि बच्चा एडॉप्ट करेंगे। तो हमने एक बच्चा एडॉप्ट किया। उसको जब घर लेकर आए तो प्रॉपर लीगल एडॉप्शन नहीं हो पा रहा था तो उसी टाइम में उसकी मौसी घर पर आई। मौसी उसकी मम्मी को भड़का दी कि पता नहीं ये किसका बच्चा उठा कर लाए हैं.... कैसा ख़ून होगा.... क्या होगा.... मतलब अनाप-शनाप बालने लगी....
तबतक मैं धनबाद में जॉब करने लगी थी तो मेरे बारे में उसके मन में मिसअंडरस्टैंडिंग क्रियेट कर बोलने लग गई कि..... ‘‘वह तो शॉर्ट स्कर्ट पहन कर जाती है.... ब्लेजर्स पहन कर जाती है..... घर रात लेट से आती है.... कॉल सेंटर में क्या करती है... तेरे को पता है न..... कॉल सेंटर का नेचर तू तो जानता है ना.... तेरे साथ तो और लड़कियां भी काम करती हैं..... कैसे-कैसे रिलेशंस रहते हैं.....’’
मतलब की हमारे रिलेशन के बीच मिसअंडरस्टैंडिंग क्रियेट करने की कोशिश की गई। तो हर चीज़ की दवा होती है, पर शक की दवा नहीं होती। तो उनको मेरे पर शक होने लगा। मेरा लेट नाइट आना, मेरा लेट नाइट जाना मीटिंग के लिए, एक एच.आर.ओ. होने के नाते कभी-कभी क्लाइंट कॉल्स होते तो रात में मुझे कॉल सेंटर में रुकना पड़ता था। तो उसकी वजह से बहुत सारी इशूज मिसअंडरस्टैंडिंग की वजह से हमको सेपरेट होना पड़ा। ऑलमोस्ट छे-सात साल हो चुके हमें अलग हुए। पर आज जब मेरे आगे उनका नाम जुड़ा है, आज सबकुछ है, मीडिया में जब वे मुझे हर जगह देखते हैं..... गूगल में सर्च मारते हैं तो मेरा नाम दिखता है.... तो अब वे वापस आना चाहते हैं..... मेरी लाइफ़ में।
तो मैंने कहा, अब क्यों..... जब मुझे तुम्हारे सहारे की ज़रूरत थी तब तो तुमने मुझे सहारा नहीं दिया..... तब तो तुम मुझे छोड़ कर चले गए अपनी फ़ैमिली के साथ..... और ऐसे दोराहे पे छोड़ गए कि मैं डिप्रेशन में चली गई.... जॉब छूट गया और मैं फिर वापस उसी चौराहे पर आकर खड़ी हो गई, जहां पर मेरे को अपना तन बेच कर अपना पेट भरना था।....
और उसी तन बेचते वक्त़ मेरा रेप हो गया। मेरा रेप होने के बाद ना मुझे कोई सपोर्ट मिला गवर्नमेंट से, ना कोई मेरी केस फाइल हुई, ना मुझे डॉक्टर से सपोर्ट मिला..... मैं उस ब्लीडिंग हालत में दर-दर की ठोकरें खा रही थी। मैंने आपको कॉल किया, बट आपने रिस्पांस नहीं किया.... आपने.... आपकी मम्मी ने कहा, ‘‘रेप कैसे क्या हुआ.... मतलब मेरी बहन सही कह रही थी.... तू धंधा भी करती है....।’’
धंधे पर लाकर खड़ा किसने किया, आप ही ने किया। तो अब वापस मेरी ज़िन्दगी में तुम आओगे..... और वापस कोई आकर आपको कुछ बोल देगा, तो आप वापस मेरी लाइफ़ से वापस निकल जाओगे और फिर वापस मैं डिप्रेशन में आके, वापस वहीं चौराहे पर जाके खड़ी नहीं रहना चाहती हूं।....’’ -क्रमशः.....