व्यष्टि से समष्टि की यात्रा : फेड
इन, फेड आउट
** योगेश
त्रिपाठी
कोरोना काल में जब यह मोटी
पुस्तक डाक से मिली तो सैनिटाइजर स्प्रे करके दो दिन तक रखा रहने दिया। फिर पढ़ने
की हिम्मत जुटाई। यूं ही बीच में कहीं पन्ने पलटे तो अपना और अपने नाटकों का जिक्र
देखा। रुचि जगी और उन पृष्ठों को पढ़ डाला। तुरंत लेखक मित्र को फोन किया और आठ दस
मिनट तक हंसता बतियाता रहा। फिर एक छोटे अंतराल के बाद पुस्तक को पढ़ना शुरू किया
तो अपने ऊपर अविश्वास हो आया। क्या मैं अब भी मोटी किताबें पढ़ सकता हूं ? लिखने
में व्यस्त होने के कारण, कई सालों से रेफरेंस की
जरूरत पड़ने पर ही मैं कोई किताब पढ़ता आया हूं।
एक सरकारी अधिकारी के नौकरी
के अनुभवों पर आधारित पुस्तक, जिसे उपन्यास कहा जा सकता
है, इतनी
रोचक हो सकती है, पहली बार महसूस हुआ। फेसबुक में शेयर इसलिए कर रहा हूं ताकि मैं अपने
मित्रों को बता सकूं कि इस पुस्तक में मात्र लेखक के निजी अनुभव नहीं हैं बल्कि
कहूं तो यह पुस्तक हाल में गुजरे तीस-बत्तीस सालों में कई जद्दोजहदों को उजागर
करने वाला दस्तावेज है। रूटीन के अभ्यस्तों और नवाचार के इच्छुकों के बीच की
जद्दोजहद, कला
के क्षेत्र में एक प्रशासनिक अधिकारी का कलाप्रेमी बने रहने की जद्दोजहद, विषम
से विषम परिस्थिति में भी अपनी संवेदनाओं को बचाए रखने की जद्दोजहद, कौटुंबिक
उलझनों के धक्कों को सहते हुए अपने परिवार को बचाने की जद्दोजहद, कई
स्तरों पर लेखक ने अपने संघर्ष को बयां किया है जो बहुत ही रोचक और बिना किसी
रोमांच के भी रोमांचक है।
एक बार पुनः कहना चाहता हूं
कि इस पुस्तक की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसे पढ़कर यह नहीं लगता कि यह केवल लेखक
का संघर्ष है। यह, इस गुजरे कालखंड में एक-एक आदमी का संघर्ष है। लेखक स्वयं सरकारी राजपत्रित
अधिकारी रहा है परंतु उसकी व्यथा, एक ठेले वाले की भी व्यथा
लगती है। मेरी समझ में नितांत व्यक्तिगत अनुभवों से समष्टि का बोध कराना लेखक की
सर्वोच्च सफलता है।
@ योगेश त्रिपाठी
नाटककार और रंग-निर्देशक
रीवा
(मध्य प्रदेश)
पुस्तक - फेड इन, फेड
आउट
लेखक – डॉ. किशोर सिन्हा
प्रकाशक - संस्कृति प्रकाशन, मुजफ्फरपुर (बिहार)
पृष्ठ संख्या – ३७५, मूल्य - रु. ५००/-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
comments