सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

           सबसे पहले तो ये नाम- कनुप्रिया- मुझे बहुत पसंद है. शायद इसके मूल में धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' पुस्तक के प्रति बेहद आसक्ति होना हो. इसलिए आपके ब्लॉग पर आना मुझे बहुत संतोष दे गया, सायद कहीं मुक्त भी कर गया मुझे.
            मैं सोच ही रहा था अपनी डायरी के पन्नों के सच को बाहर लाने के लिए, कि आपके लिखे ने मुझे गहन रूप से झिंझोर डाला, कि कहना आसान हुआ, कि पुरानी यादों में लौटने का इमकान हुआ.

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