सोमवार, 28 सितंबर 2009

रेकी उपचार

(यहाँ आप दूरस्थ चिकित्सा पद्धति से रेकी उपचार करा सकते हैं)


सुरों का सफर

(अनमोल गीतों की दुनिया के हमसफ़र बनें)


बिहार और झारखण्ड के दर्शनीय स्थल

(पर्यटन की दृष्टि से अनुपम और नयनाभिराम दृश्यों के साक्षी बनें)

बरसात में भीगती लडकियां





बरसात में भीगती लडकियां





अच्छी लगती हैं
बरसात में भीगती हुई लडकियां ,
लडकियां स्कूलों से लौटती
अपनी सहेली की बाँहों में झूलती-सी
आपस में करती हुई ठिठोलियाँ
उमंगों की नई डोर वाली पतंग पे सवार होती हैं
भीगती हुई लडकियां
लडकियां छेड़ती हैं एक -दूसरे को
शर्मीली मुस्कानों में
और चिडिया की -सी बातों में
किसी की नोटबुक में रखी है
तस्वीर शाहिद कपूर की ,
कोई है दीवानी
धोनी की ,
किसी की कॉपी से अचानक गिरता है मोरपंख
झुककर उठाते हुए
गर्व से बताती है सहेली को
‘मांगने के लिए वरदान कई रखा है इसे संभालकर ,
शायद सच हो जाए उनमें से कोई भी …’
पर नहीं जानतीं
बरसात में भीगती हुई लडकियां
अगले पाँच -छे -सात -आठ वर्षों में
मायने बदल जायेंगे
इस मौसम के इनके लिए …
शादी के बाद घर से जाएँगी लडकियां
बहू , भाभी , देवरानी , जेठानी -जैसे संबंधों कें नए नामों से
पुकारी जाएँगी ,
ज़िम्मेदारी के अहसास से
अपना अधिकार जताएंगी ,
उस घर को खुशहाल और स्वर्गिक बनाने में
अपना सर्वस्व लगाएंगी ….
अगले पाँच -छे -सात -आठ वर्षों में
नहीं होगा कोई शाहिद कपूर या धोनी
उनकी कापियों में तब ,
राशन की चीजों के नाम ,
धोबी का हिसाब
और सब्जियों के दाम
लिखे जायेंगे उन कापियों में ,
उन्हीं में जोड़ -तोड़कर
मुन्ने की पहली पसंद
खिलोनेवाली मौज़र पिस्तौल कैसे खरीदी जाए
इसकी भी गुंजाइश निकाली गई होगी
नोटबुक का मोरपंख
न जाने कब फिसल चुका होगा
स्मृति की अंधी सुरंग में
और वहां रखा होगा
बिजली का बिल ,
मकान -भाड़े और
मुन्ने के स्कूल की फीस की रसीद …
इसी तरह
वर्तमान से भविष्य तक के प्रस्थान -बिन्दुओं में
शामिल होती जाएँगी लडकियां
पर कहीं से भी तारीफ़ नहीं पाएँगी ,
हर वक्त , हर समय
कोसी ही जाएँगी
पता भी नहीं चलेगा उन्हें
कैसे एक भीगा हुआ मौसम
मर गया बेवक्त उनके अपने अंदर
और किस तरह वे छली गयीं
अपने ही मरे हुए सपनों की केसरगंधी तितलियों से …
इसलिए अच्छी लगती हैं
बरसात में भीगती हुई लडकियां …
उमंगों की नई डोर वाली पतंग पे सवार
वे जी लेती हैं पूरा जीवन
बरसात में भीगती लडकियां …
रचा लेती हैं
मौसम को मेहंदी की तरह
मन की हथेलियों पर
बिना जाने

कि आने वाला मौसम
रचनेवाला है साजिश काले अंधियारे की ..
पर उम्मीद बंधती है
कि बदलेंगे
वर्तमान से भविष्य तक के प्रस्थान -बिन्दु
बरसात में भीगती हुई लडकियां के
तब ये कोसी नहीं जाएँगी ,
छली नही जाएँगी ,
मौसम की यही चुहल ,
यही छेड़छाड़ ,
यही ठिठोली ,
ये जीवन -दर -जीवन लेती ही जाएँगी …
जीवन -दर -जीवन लेती ही जाएँगी …

õõõõõõ




गुरुवार, 24 सितंबर 2009

आभा पूर्वे का कहानी संग्रह-प्रकाशक : मनप्रीत प्रकाशन, १६/१६, प्रथम तल, गीता कालोनी, नई दिल्ली-३१ संस्करण : २००३, मूल्य- १००/-




चन्दन जल न जाए

(आभा पूर्वे का कहानी संग्रह)

अभी कुछ दिनों पहले भागलपुर की कहानीकार श्रीमती आभा पूर्वे का कहानी संग्रह 'चंदन जल न जाए' पढने का मौक़ा मिला। एक अद्भुत संतोष का अनुभव हुआ। आभा पूर्वे की कहानियाँ गागर में सागर हैं। अपनी प्रकृति में ये कहानियाँ लघुकथा के निकट जान पड़ती हैं। जिस प्रकार लघुकथाओं में एक प्रश्नातुर चिंता दिखती है, उसी प्रकार इनकी कहानियों में भी। गठन को लेकर हठीलापन जिस प्रकार लघुकथाओं में नहीं होता, उसी प्रकार आभा जी की कहानियाँ भी इस हठ से मुक्त हैं। सहज प्रवाह में, भाव-प्रवणता में जो सत्य बहता हुआ चला आया है, उसे ही कहानीकार द्वारा जस-का-तस रख दिया गया है। इसीलिए भाषिक आलंकारिकता और चमत्कारपूर्ण व्यंजनाओं से मुक्त ये कहानियाँ कहीं-न-कहीं मन को छूती हैं अपने बेबाकपन से, गुदगुदाती हैं अपनी सहजता से और उद्वेलित करती हैं अपने भीतर से उठते प्रश्नों से। फिर भी, आभा पूर्वे की कहानियाँ चिंतन-प्रधान मानी जाएँगी, जिनमें विवरण का आधिक्य नहीं है, परन्तु अपने कलेवर में ये कहानियाँ नितांत सामाजिक हैं.





शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

मान न मान, मैं तेरा मेहमान

नई सड़क पर एक आदमी चला जा रहा था. उसे देखकर एक व्यक्ति बोला- " कहाँ जा रहे हो ?"
वो आदमी बोला- "अपने घर जा रहा हूँ ।"
" क्यों जा रहे हो ?"
"काम से लौट रहा हूँ, इसलिए ..."
"अच्छा-अच्छा...पर काम क्या करते हो..?"
" मैं बुनकर हूँ । नए-नए कपड़े तैयार करता हूँ।"
"और तुम्हारी बीवी...? वो क्या करती है॥?"
"वो मेरे लिए खाना बनाती है।"
"वो खाना क्यों बनाती है ?"
"क्योंकि मैं उसके लिए काम करता हूँ।"
कुछ लोग बिल्कुल इसी प्रकार के होते हैं, बाल में से खाल निकालनेवाले । आपको उनसे कुछ लेना-देना हो न हो, वो आपको यूँ ही परेशान करते रहेंगे। ऐसे लोगों से कैसे बचा जाए?

मेरी पुस्तक- ‘तीस साल लम्बी सड़क’ से......

  मेरी पुस्तक- ‘ तीस साल लम्बी सड़क ’ से...... मेरे बचपन के देखे घर में हमेशा एक नौकर भी रहा है। एक नौकर था , जिसका नाम था ‘ बच्चू ’, पर घर...