रविवार, 4 अक्तूबर 2009

कुछ बना, कुछ अधबना सच लेकर अपने-अपने हिस्से का कौन-सा  ऐसा दुःख है, जो जलाता भी है और तृप्त भी करता है कि कुछ खोकर भी पाने का उपालंभ देता है....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

comments

मेरी पुस्तक- ‘तीस साल लम्बी सड़क’ से......

  मेरी पुस्तक- ‘ तीस साल लम्बी सड़क ’ से...... मेरे बचपन के देखे घर में हमेशा एक नौकर भी रहा है। एक नौकर था , जिसका नाम था ‘ बच्चू ’, पर घर...